उस वख्त चरम पर बुराई होगी – कविन्द्र पूनिया


hindi poems on life

बचपन से जवानी के सफर

की कहानी को जब पुकारा जाएगा

अच्छे बुरे ओर रिस्तो में फर्क आ ही जाएगा

रहने को सब साथ होंगे

चेहरो पर खुशी ओर ओठो पर अपने अपने के जाप होंगे

वही सब पीठ पीछे सांप होंगे

चहरे चमकेंगे दिल तो ना साफ होंगे

माँ बाप के रिश्ते ही बस पाक होंगे

बाकी तो सब दुनिया को दिखाने साथ होंगे

मुलाकात बस नाम की होगी

सुबह से शाम अकेले के नाम की होगी

गरीब ने घर पर रोटी भी ना बनाई होंगी

अमीर को अपनी दौलत से ना समाई होगी

उस वख्त चरम पर बुराई होगी

उस वख्त चरम पर बुराई होगी

दोस्ती में अच्छी हिदायत कौन देगा

हर महफ़िल में जाम की बात होगी

दिन की शुरुआत भी उसी से

फिर कौनसी अलग रात होगी

प्यार के नाम पर जिस्म की नुमाइश होगी

चहरे ओर पैसो से ही मोहब्बत की कमाई होगी

किसान ने फिर कही फंदे में अपनी जान फ़साई होगी

सरकार को नही पड़ेगा फर्क

उसने किसी शाहिद की चिता पर अपनी कुर्सी लगाई होगी

रोजगार के नाम पर सिर्फ समाचार होंगे

बेरोजगारी की भीड़ में तो बड़ाई होगी

मेरे देश के लिए कुछ करने वाले

घर बार छोड़ के मरने वाले

उनके परिवार की आखो में नरमाई होगी

धरती जल उठेगी जब तकनीक ने आग लगाई होगी

उस वख्त चरम पर बुराई होगी

चलो ठीक है वैसे तो 

ख़तम तो होना ही है एक दिन

रोयेगा वो भी जिसने दुनिया बनाई होगी

जिस वख्त चरम पर बुराई होगी

लेखक :- कविन्द्र पूनिया

अगर आप को अच्छी लगे मेरी कविता तो आप अपना सुझाव comment में जरूर दे अगर कोई गलती हो उसके लिए क्षमा कर दे

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